गेंहू, सरसों और आलू की फसलों पर बढ़ते तापमान का खतरा : अपनाएं ये उपाय

राम राम किसान साथियों जैसा की आप सभी जानते है कि गेंहू, सरसों तथा आलू रबी की फसल है। तथा इसके लिए तापमान की आवश्यकता बहुत कम होती है। इनकी आवश्यकता से अधिक तापमान की मात्रा इनकी पैदावार को प्रभावित करती है। हाल ही में मौसम में हो रहे परिवर्तन से गेंहू, सरसों और आलू की फसल पर खतरा बढ़ता नजर आ रहा है। बढ़ते हुए तापमान के कारण गेंहू, सरसों और आलू की फसल में काफी परिवर्तन देखने को मिल रहे है।

आलू की फसल पर बढ़ते तापमान का प्रभाव-

किसान साथियों आलू (Solanum tuberosum) एक महत्वपूर्ण कंद फसल है जो भारत के विभिन्न हिस्सों में उगाई जाती है। यह फसल विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, और बिहार में प्रमुख रूप से उगाई जाती है। इसके अतिरिक्त, मध्य प्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी इसकी खेती की जाती है। आलू की फसल का उत्पादन दो मुख्य मौसमों में होता है – रबी (सर्दी) और खरीफ (बरसात)।

किसान भाइयों आलू की अच्छी फसल के लिए दिन के समय की लम्बाई तथा तापमान दो महत्वपूर्ण करक है। आलू की वृद्धि के लिए एक नियमित तापमान की आवश्यकता होती है। लगभग 2 डिग्री सेल्सियस से 5 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर आलू के पौधे के कंद तथा अन्य भागों में भी वृद्धि लभगभ रुक ही जाती है। आलू की फसल के लिए नियमित तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाते ही इसके कंद तथा अन्य भागों की वृद्धि रफ्तार पकड़ लेती है।

आलू की फसल में एक रोचक बात ये है की जैसे जैसे तापमान बढ़ता है वैसे-वैसे ही आलू की के अंदर जैव-रासायनिक तथा अन्य शारीरिक क्रियाएँ बढ़ने लगती है। यानी की यदि तापमान में लगभग 10 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो आलू की फसल में जैव-रासायनिक क्रियाएँ लगभग 2.5 गुणा बाद जाती है। आलू की फसल के लिए 4 डिग्री सेल्सियस से लेकर के 18 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान इसकी वृद्धि तथा विकास की दृस्टि से अनुकूल माना जाता है। क्योकि इस तापमान में आलू की फसल में श्वसन दक्षता की मात्रा बढ़ जाती है।

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किसान भाइयो इसके साथ ही तापमान की मात्रा यदि 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाती है तो आलू की फसल में कंद और अन्य भागों का विकास रुक जाता है। और यदि तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर चला जाए तो आलू की फसल में कंद तथा अन्य भागो का वृद्धि तथा विकास पूर्ण रूप से बंद हो जाता है।

गेंहू की फसल पर बढ़ते तापमान का प्रभाव-

किसान भाइयों गेंहू एक रबी की फसल है। गेंहू एक विश्व व्यापी प्रकार की खाद्द्यान फसल है। गेंहू का वानस्पतिक नाम- ट्रिटिकम एस्टीवम होता है। चीन के बाद गेंहू उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। किसान भाइयों आपको मालूम है की गेंहू की फसल के लिए एक नियमित तापमान की आवश्यकता होती है। लेकिन हाल ही बढ़ता हुआ तापमान किसानों के लिए एक चिंता का विषय बनता आ रहा है।

किसान भाइयो हाल ही मार्च के महीने में ही ये बढ़ता हुआ तापमान गेंहू की फसल के लिए बहुत अधिक हानिकारक साबित हो सकता है। क्योकि आवश्यकता से अधिक तापमान के कारण गेंहू की फसल में पुष्पन की प्रक्रिया धीमी हो जाएगी तथा बालियों में दाने पूर्ण रूप से नहीं भर पाएगे। इसके आलावा अधिक तापमान के कारण गेंहू की फसल अपने पकाव के निर्धारित समय से पहले ही पककर तैयार हो जाएगी। ऐसी स्थिति में गेंहू की उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होंगी। क्योकि अधिक तापमान के कारण गेंहू के दानों का विकास सही और पूर्ण रूप से नहीं हो पाएगा।

किसान भाइयों आप गेंहू की फसल में बढ़ते हुए तापमान के प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित विधियों का इस्तेमान कर सकते है-

1. गेंहू की फसल को बढ़ते हुए तापमान की चपेट में आने से बचाने के लिए गेंहू की फसल जब पकाव और बालियों में दाना भराव की स्थिति में हो उस समय आप सैलिसिलिक अम्ल की स्प्रे अपनी गेंहू की फसल में 15 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी के हिसाब से फॉलियर स्प्रे करें। सैलिसिलिक अम्ल की स्प्रे गेंहू की फसल को प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।और गेंहू के पकाव के निर्धारित समय ये पहले पकने में सहायता करता है तथा गेंहू के उत्पादन में भी कोई गिरावट नहीं होती है। इस स्प्रे को आपको 2 चरणों में करने से अधिक लाभ प्राप्त होगा –

  • पहली स्थिति– जब गेंहू की फसल झंडा पत्ती की अवस्था में हो।
  • दूसरी स्थिति- जब गेंहू की फसल दूधिया अवस्था में हो।
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2. गेंहू की फसल को बढ़ते हुए तापमान की चपेट में आने से बचाने के लिए गेंहू की फसल में बार-बार आवश्यकता के अनुसार हल्की-हल्की सिंचाई करते रहे। या

3. गेंहू की फसल को बढ़ते हुए तापमान की चपेट में आने से बचाने के लिए गेंहू की फसल में आप 0.2 % म्यूरेट ऑफ़ पोटाश का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर कर सकते है। या

4. गेंहू की फसल को बढ़ते हुए तापमान की चपेट में आने से बचाने के लिए गेंहू की फसल 0.2 % पोटेशियम नाइट्रेट का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर कर सकते है। या

5. गेंहू की फसल को बाली आने के समय बढ़ते हुए तापमान की चपेट में आने से बचाने के लिए एस्कोर्बिक अम्ल की स्प्रे अपनी गेंहू की फसल में 10 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी के हिसाब से फॉलियर स्प्रे करें। या

6. गेंहू की पछेती फसल को बाली आने के समय बढ़ते हुए तापमान की चपेट में आने से बचाने के लिए पोटेशियम नाइट्रेट, चिलेटेड मैगनीज आदि का छिड़काव भी कर सकते है ये भी बहुत अधिक लाभदायक साबित होता है।

7. किसान साथियों यदि बढ़ते हुए तापमान के कारण आपकी गेंहू की फसल में यदि झुलसा रोग दिखाई पड़ता है तो आप अपनी गेंहू की फसल में प्रोपिकोनाजोल को 01 ml प्रति 01 लीटर पानी के हिसाब से 10 से 12 दिनों के अंतराल पर छिड़काव कर सकते है।

सरसों की फसल पर बढ़ते तापमान का प्रभाव-

किसान भाइयों सरसों एक रबी की फसल है। सरसों भी एक प्रकार की बहुत ही महत्व वाली व्यापरिक फसल है। जिसका वानस्पतिक नाम- ब्रेसिका कम्प्रेसटिस होता है। भारत में मूंगफली के बाद दूसरे नंबर पर सरसों आती है। किसान भाइयों आपको मालूम है की सरसों की फसल के लिए एक नियमित तापमान की आवश्यकता होती है। लेकिन हाल ही बढ़ता हुआ तापमान किसानों के लिए एक चिंता का विषय बनता आ रहा है।

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किसान भाइयो हाल ही मार्च के महीने में ही ये बढ़ता हुआ तापमान गेंहू की फसल के लिए बहुत अधिक हानिकारक साबित हो सकता है। क्योकि आवश्यकता से अधिक तापमान के कारण सरसों की फसल में बहुत ही ज्यादा जल्दी पकाव आ जाएगा। किसान भाइयो आप जानते है की यदि किसी भी फसल में निर्धारित समय से पहले पकाव आता है तो उसके दाने कमजोर रह जाते है। दाने कमजोर रहने की स्थिति में सरसों की उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों ही खराब हो जाएंगी।

किसान साथियों तापमान बढ़ने के साथ ही सरसों की फसल में लाही किट का प्रकोप बढ़ जाता है। और ये प्रकोप लगभग मध्य फरवरी से लेकर के मध्य मार्च तक बना रहता है। और ये किट सरसों में लगे हुए फूलों और फलों को उनका रस चूसकर और खाकर नष्ट कर देते है। जिसके कारण सरसो का दाना पतला रह जाता है और उत्पादन क्षमता पर बहुत अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है।

किसान भाइयों आप सरसों की फसल में बढ़ते हुए तापमान के प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित विधियों का इस्तेमान कर सकते है-

1. सरसों की फसल को बढ़ते हुए तापमान की चपेट में आने से बचाने के लिए सरसों की फसल में आप एमिडाक्लोपीड 70 % का छिड़का प्रति 01 लीटर दवा को 500 लीटर पानी के हिसाब से 01 हेक्टेयर भूमि पर छिड़काव कर सकते है। अगर आपकी फसल में लगभग 30 प्रतिशत पौधों पर ये कीड़ा हो तो ही इस दवा का छिड़काव करें।

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