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12 मिनट पहलेलेखक: शिवेंद्र गौरव
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इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने एक बार फिर दिन में 14 घंटे काम करने की वकालत की है। एक समिट में बोलते हुए उन्होंने कहा कि देश के लोगों को काम के प्रति रवैया बदलना चाहिए। उन्होंने अपने खुद के थकाऊ शेड्यूल का जिक्र किया। यह भी कहा कि पीएम मोदी हफ्ते में 100 घंटे काम कर रहे हैं। देश के नागरिकों को भी उनके जैसा समर्पण करना चाहिए। इसके बाद एक बार फिर भारत के वर्क कल्चर को लेकर बहस शुरू हो गई है।
काम के घंटे बढ़ाने के पक्ष में नारायण मूर्ति ने 4 बातें कहीं-
- मैंने हफ्ते में साढ़े 6 दिन, रोजाना 14 घंटे काम किया है। मुझे साल 1986 में 6 वर्किंग-डे वीक की जगह 5 वर्किंग-डे वीक के बदलाव पर निराशा हुई।
- अगर हम चाहते हैं कि भारत वैश्विक स्तर पर आगे बढ़े तो भारतीयों को कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
- जो लोग सबसे ज्यादा इंटेलिजेंट हैं वह भी लगातार एफर्ट्स के बिना सफल नहीं हो सकते।
- जब पीएम मोदी हफ्ते में 100 घंटे काम कर रहे हैं तो देश के नागरिकों को भारत की प्रगति को आगे ले जाने के लिए अतिरिक्त घंटों के लिए काम करके उनके बराबर समर्पण करना चाहिए।
काम के घंटे बढ़ाने की नारायण मूर्ति की इस वकालत की लोग पहले भी आलोचना करते रहे हैं। नारायण मूर्ति के हालिया बयान से सवाल उठता है कि क्या भारतीय लोग बाकी दुनिया की तुलना में कम काम करते हैं। इसे नीचे की स्लाइड से समझते हैं-
डाटा सोर्स- ILO
भारत में 10 में से 8 एम्प्लॉयर्स वर्किंग प्लेस पर ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ पॉलिसी के पक्ष में
नारायण मूर्ति हफ्ते में काम के घंटे बढ़ाने और देश की तरक्की के लिए वर्क-लाइफ बैलेंस को प्राथमिकता न देने की बात करते हैं। हालांकि डाटा बताता है कि ऑफिस के काम के घंटों के बाद भी 88% भारतीय ऑफिस से किसी न किसी तरह लगातार कॉन्टैक्ट में रहते हैं। ग्लोबल जॉब मैचिंग और हायरिंग प्लेटफॉर्म Indeed ने जुलाई से सितंबर 2024 के दौरान एक सर्वे करवाया था। इसके 4 निष्कर्षों पर काम के घंटे बढ़ाने की वकालत करने वालों को गौर करना चाहिए-
- 85% एम्प्लॉइज ने बताया कि वह अगर बीमारी की वजह से छुट्टी पर हों या पब्लिक हॉलिडे के दिन घर पर हों तब भी ऑफिस से कम्युनिकेशन बना रहता है।
- 79% एम्प्लॉइज को महसूस होता है कि काम के घंटों (Working Hours) के बाद भी मौजूद ना रहने पर उन्हें सजा मिल सकती है।
- 81% एम्प्लॉयर्स को लगता है कि अगर उन्होंने सोशल लाइफ और वर्क लाइफ के बीच अंतर बनाकर नहीं रखा तो वो हुनरमंद एम्प्लॉइज को खो देंगे। हर 10 में से 8 एम्प्लॉयर्स वर्किंग प्लेस पर ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ पॉलिसी को लागू करने के पक्ष में हैं।
इस पॉलिसी का मतलब है कि काम के तय घंटों के बाद एम्पलॉई को उसके ऑफिस के काम या किसी भी और तरह के कम्युनिकेशन से पूरी तरह दूर रहने की आजादी मिलनी चाहिए।
सिर्फ एम्प्लॉई की हेल्थ के लिए नहीं, अच्छे काम के लिए भी वर्क-लाइफ बैलेंस जरूरी
नारायण मूर्ति ने इस बार ऐसे समय पर काम के घंटों पर बयान दिया है, जब देश में ‘कारोशी’ का डर जताया जा रहा है। कारोशी- यानी काम करते करते मौत। ये एक जापानी शब्द है, जो तब चलन में आया जब जापान में काम करते करते लोगों का मरना आम बात हो गया था। अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन ने कई स्टडीज के रिजल्ट्स पर एक रिसर्च छापी है। इसके मुताबिक ज्यादा घंटों तक काम करने से बीपी, डायबिटीज और दिल की बीमारियां हो सकती हैं। इनके अलावा व्यक्ति की नींद और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
हालांकि कॉर्पोरेट्स में काम करने वाले लोग वर्किंग ऑवर्स से इतर काम करना अब नॉर्मल मान चुके हैं। जबकि कई स्टडीज में ये भी पाया गया है कि लंबे वर्किंग आवर्स से प्रोडक्टिविटी पर नकारात्मक असर पड़ता है। कर्मचारियों को वर्कप्लेस पर अच्छा महसूस कराया जाए तो इससे वो बेहतर परफॉर्म कर पाते हैं।
इंडिया के बेस्ट वर्कप्लेसेज इन हेल्थ एंड वेलनेस 2023 रिपोर्ट के मुताबिक अगर एम्प्लॉइज मानसिक तौर पर अच्छा महसूस करते हैं तो…
- उनके उसी ऑर्गेनाइजेशन में काम करने के चांसेज 3 गुना बढ़ जाते हैं।
- वो दिए काम को पूरा करने में 2 गुना ज्यादा मेहनत लगाते हैं।
- ऑर्गेनाइजेशन की बेहतरी के लिए किए गए बदलावों को अपनाने में 3 गुना ज्यादा एफर्ट लगाते हैं।
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देश में इन दिनों ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ी हुई है। हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक, हर 10 में से 8 एम्प्लॉयर्स वर्किंग प्लेस पर ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ पॉलिसी को लागू करने के पक्ष में हैं। पूरी खबर पढ़िए…